हमारे बच्चों के पास ओलंपिक खेलों के लिए संसाधन क्यों नहीं हैं? सरकारी स्कूलों में इसका विकास क्यों नहीं हो रहा है?

भारत में ओलंपिक खेलों के विकास और प्रगति में कई चुनौतियाँ हैं जो बच्चों के लिए संसाधनों की कमी का कारण बनती हैं। इनमें प्रमुख मुद्दे हैं:

  1. खेल संसाधनों की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों और सरकारी स्कूलों में खेल के लिए बुनियादी ढाँचे का अभाव है। बेहतर प्रशिक्षण सुविधाओं और उपकरणों की कमी खिलाड़ियों के विकास में बाधा डालती है। शहरी क्षेत्रों में कुछ अच्छे स्टेडियम हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति बहुत खराब है।
  2. धन की कमी: खेल क्षेत्र में वित्तीय सहायता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। सरकारी और निजी क्षेत्र से पर्याप्त धनराशि नहीं मिलती है, जिसके कारण खिलाड़ी अच्छे उपकरण और प्रशिक्षण सुविधाओं तक पहुंचने में असमर्थ रहते हैं।
  3. खेल संस्कृति का अभाव: भारत में खेलों को एक प्रमुख करियर विकल्प के रूप में नहीं देखा जाता। अभिभावक और समाज आमतौर पर बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए प्रेरित करते हैं, जबकि खेलों को जीवन खराब करने वाला माना जाता है। यह मानसिकता खेलों के विकास में बाधक है।
  4. क्रिकेट का प्रभुत्व: क्रिकेट के कारण अन्य खेलों में निवेश और मीडिया कवरेज कम हो जाता है। सरकारी फंडिंग और प्रायोजन का बड़ा हिस्सा क्रिकेट पर केंद्रित रहता है, जबकि ओलंपिक खेलों जैसे जिम्नास्टिक्स और एथलेटिक्स के लिए संसाधन सीमित होते हैं।
  5. शिक्षा प्रणाली में खेलों की उपेक्षा: भारतीय स्कूलों में खेल और शारीरिक शिक्षा पर कम ध्यान दिया जाता है। कुछ ही स्कूल हैं जो खेलों को पढ़ाई के बराबर महत्व देते हैं। इससे बच्चों में खेलों के प्रति रुचि और प्रतिभा की पहचान मुश्किल हो जाती है।

इन समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को खेलों के लिए बुनियादी ढाँचा, धन और संसाधन उपलब्ध कराने पर ध्यान देना होगा। साथ ही, स्कूलों में खेलों को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल करने की आवश्यकता है ताकि खेल संस्कृति विकसित हो सके।

सरकार का ओलंपिक खेलों पर पर्याप्त ध्यान न देने के कई कारण हैं:

  1. धन की कमी और प्राथमिकताओं में अंतर: सरकार का खेल बजट क्रिकेट जैसे खेलों पर अधिक केंद्रित रहता है, जिससे ओलंपिक खेलों के लिए धन कम उपलब्ध होता है। भारत का खेल बजट अन्य ओलंपिक-ध्यान केंद्रित देशों जैसे चीन और अमेरिका की तुलना में बहुत कम है। इस कारण से खिलाड़ियों को जरूरी प्रशिक्षण और संसाधन नहीं मिल पाते।
  2. खेल प्रशासन में भ्रष्टाचार: खेल प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है। खेल संगठनों में भाई-भतीजावाद और पक्षपात की शिकायतें आम हैं, जिससे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उचित अवसर नहीं मिल पाते।
  3. खेल संस्कृति की कमी: भारत में ओलंपिक खेलों को लेकर एक मजबूत खेल संस्कृति नहीं है। खेलों को जीवन में एक प्रमुख करियर विकल्प के रूप में नहीं देखा जाता, और सरकार की प्राथमिकताएं भी खेल संस्कृति को बढ़ावा देने में नहीं झलकतीं। इसके अलावा, सरकार के द्वारा खेल को शिक्षा प्रणाली का एक हिस्सा नहीं बनाया गया, जिससे बच्चों में खेलों के प्रति रुचि कम हो जाती है।
  4. क्रिकेट का दबदबा: क्रिकेट को लेकर सरकार का ध्यान और मीडिया का ध्यान इतना ज्यादा है कि बाकी खेल उपेक्षित रह जाते हैं। क्रिकेट को मिलने वाले भारी प्रायोजन और निवेश के कारण अन्य खेलों को आर्थिक और सामाजिक समर्थन नहीं मिल पाता।

इस प्रकार, सरकार का ध्यान ओलंपिक खेलों पर पर्याप्त नहीं होने का मुख्य कारण है प्राथमिकता में कमी, धन की अनुपलब्धता, और खेल प्रशासन की कमजोरियां।

सरकारी स्कूलों में ओलंपिक खेलों के विकास का अभाव मुख्य रूप से खेलों को प्राथमिकता न देने और ढांचागत समस्याओं के कारण है। सरकार शिक्षा प्रणाली में खेलों को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल नहीं करती, जिससे छात्रों के लिए खेलों के प्रति रुचि और प्रशिक्षण के अवसर सीमित हो जाते हैं। इसके कई कारण हैं:

  1. अपर्याप्त खेल अवसंरचना: सरकारी स्कूलों में खेल के मैदान, प्रशिक्षकों और सुविधाओं की कमी है। स्कूलों में खेल को प्रोत्साहित करने के लिए न तो पर्याप्त साधन हैं, न ही शिक्षक। कई बार खेल के लिए नियुक्त किए गए शिक्षक भी सही प्रशिक्षण नहीं देते, क्योंकि उनके पास खुद भी खेलों का पर्याप्त ज्ञान नहीं होता।
  2. शिक्षा नीति में खेलों की अनदेखी: शिक्षा प्रणाली में खेलों को अन्य शैक्षणिक विषयों के बराबर महत्व नहीं दिया जाता। खेलों को एक माध्यमिक गतिविधि माना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप छात्रों को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर कम मिलता है। जब तक सरकार खेलों को शिक्षा के मुख्य भाग के रूप में नहीं अपनाती, तब तक ओलंपिक खेलों में प्रगति की संभावना कम रहती है।
  3. खेल संसाधनों का अभाव: कई सरकारी स्कूलों में आवश्यक खेल उपकरण और मैदानों की कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित सरकारी स्कूलों में तो स्थिति और भी खराब है, जहाँ खेल के प्रति बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता और छात्रों को बिना किसी सही दिशा के छोड़ दिया जाता है।

इन सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए सरकार को शिक्षा नीति में बदलाव करते हुए खेलों को अनिवार्य बनाना होगा और स्कूल स्तर पर संसाधनों का सही वितरण सुनिश्चित करना होगा।

आइये चलते है, राजस्थान के सीमावर्ती जिले जैसलमेर…

जब हम जैसलमेर के मोहनगढ़ इलाके की स्थिति पर नजर डालते हैं, तो सरकारी स्कूलों में खेल सुविधाओं की भारी कमी साफ दिखाई देती है। इस क्षेत्र में अधिकांश सरकारी स्कूलों के पास न तो उचित खेल मैदान हैं और न ही बच्चों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षक। इसके साथ ही, स्कूलों में बिजली की अस्थिर आपूर्ति से बुनियादी शैक्षिक और खेल संसाधनों की कमी होती है, जो बच्चों के विकास में बड़ी बाधा है।

मोहनगढ़ के सरकारी स्कूलों की स्थिति ऐसी है कि जहां बिजली की बार-बार जाने वाली समस्या ने बच्चों की पढ़ाई और खेल की गतिविधियों को प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए, यहां बिजली की अनियमितता के कारण कंप्यूटर लैब, खेल के मैदान और शारीरिक शिक्षा की कक्षाओं में बाधा आती है। जब बुनियादी शिक्षा के लिए भी संसाधन उपलब्ध नहीं हैं, तो ओलंपिक जैसे खेलों के विकास की बात करना बहुत दूर की कौड़ी लगती है। जैसलमेर के अन्य विद्यालयों की समस्या भी इसी प्रकार की है, जहां बिजली की समस्या ने खेल और अन्य सह-शैक्षिक गतिविधियों को प्रभावित किया है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि मोहनगढ़ और जैसलमेर के अन्य ग्रामीण इलाकों में खेलों का विकास केवल बुनियादी संसाधनों की कमी और सरकारी प्राथमिकताओं में खेलों को अनदेखा करने के कारण रुक गया है। जब तक इन क्षेत्रों में खेल अवसंरचना और प्रशिक्षण सुविधाओं में सुधार नहीं किया जाता, तब तक बच्चों के ओलंपिक स्तर तक पहुंचने की संभावना कम ही बनी रहेगी।

जैसलमेर का मोहनगढ़ क्षेत्र इस देश के ग्रामीण इलाकों की बड़ी तस्वीर का मात्र एक उदाहरण है, जहाँ सरकारी स्कूलों में खेल के संसाधन और सुविधाओं की भारी कमी है। मोहनगढ़ की समस्याओं जैसे बिजली की अनियमित आपूर्ति, खेल के लिए उचित बुनियादी ढांचे का अभाव, और प्रशिक्षकों की कमी, पूरे भारत में आम हैं। यह स्थिति पूरे देश के सैकड़ों स्कूलों में देखी जा सकती है, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में, जहाँ खेल विकास के लिए बिल्कुल भी व्यवस्था नहीं है।

देश के विभिन्न हिस्सों में भी यही कहानी दोहराई जाती है—बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और ओडिशा जैसे राज्यों के ग्रामीण स्कूलों में भी बुनियादी खेल सुविधाओं की कमी के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो रहा है। बिना किसी उचित खेल संसाधन के, ओलंपिक स्तर के एथलीट तैयार करना संभव ही नहीं हो पाता। इसके अलावा, शिक्षा नीति में खेलों को अनदेखा करना और सीमित सरकारी बजट इस स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं।

इस प्रकार, जैसलमेर का उदाहरण दिखाता है कि देश में खेलों के विकास की कोई ठोस उम्मीद नहीं है जब तक कि सरकारी प्राथमिकताएँ नहीं बदलतीं और खेल को शिक्षा का अभिन्न हिस्सा नहीं बनाया जाता। इस मौजूदा ढांचे में सुधार के बिना, भारत से ओलंपिक स्तर के खिलाड़ियों का निकलना एक सपना ही रहेगा, क्योंकि जिस बुनियादी स्तर पर बच्चों को तैयार किया जाना चाहिए, वही सबसे ज्यादा उपेक्षित हो रहा है।

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